अगर देश की सुरक्षा यही होती है
कि हर हड़ताल को कुचल कर अमन को रंग चढ़ेगा
कि वीरता बस सरहदों पर मरकर ही परवान चढ़ेगी
कला का फूल बस राजा की खिड़की में ही खिलेगा
बुद्धि हुक्म के कुँए पर रहट की तरह पानी ही भरेगी
मेहनत राजमहल की दर पर झाड़ू ही बनेगी
तो हमें देश की सुरक्षा से खतरा है
(पाश)
आपकी बात से सहमत हूं। इसे पढ्ते पढ्ते ब्रेष्ट की एक कविता की कुछ पंक्तियां याद आईं
ReplyDeleteजिस तरह रोटी की जरूरत रोज है
इंसाफ की जरूरत भी रोज है
बल्कि दिन में कई-कई बार भी
उसकी जरूरत हैा